प्रेम डोर - भाग 1 Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम डोर - भाग 1

प्रस्तावना

ख्यातिलब्ध लेखक एवं उद्योगपति श्री राजेश माहेश्वरी की यह पुस्तक ‘प्रेम डोर‘ एक लघु उपन्यास है जिसमें दो घनिष्ठ मित्रों की कहानी है जो कि पर्यटन एवं व्यवसायिक यात्रा हेतु अरूणाचल प्रदेश जाते हैं। वहाँ घटित घटनाओं से उन दोनों का जीवन बदल जाता है। इस कहानी मेें काफी उतार चढ़ाव हैं जो रहस्य और रोमांच से भरपूर है। यह कहानी परिस्थितियों से जूझने की शिक्षा प्रदान करती है, वही जीवन में खुशियाँ और तनावमुक्त रहने की सीख भी प्रदान करती है।

श्री राजेश माहेश्वरी जी की अनेक पुस्तकें सुप्रसिद्ध प्रकाशनों से प्रकाशित हो चुकी है व उनके लेख, कहानियाँ एवं कविताएँ अनेक पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं। इस लघु उपन्यास में देवेन्द्र सिंह राठौर का भी सहयोग प्राप्त होता रहा, उनको साधुवाद देता हूँ। ‘प्रेम डोर‘ निश्चित ही सफलता के नये आयाम स्थापित करेगी ऐसी हमारी आशा है। श्री राजेश माहेश्वरी जी को बधाई एवं शुभकामनाएं।

- श्याम सुंदर जेठा

प्रेम डोर

हमारे देश का पूर्वोत्तर भाग अपने नैर्सगिक सौंदर्यता, खनिज पदार्थों एवं कोयले के लिये सुप्रसिद्ध है। अरूणाचल प्रदेश भारत चीन सीमा का सीमावर्ती प्रदेश होने के कारण अपनी भौगोलिक स्थिति, सामरिक महत्व, वर्ष भर हिम से आच्छादित पर्वत श्रंृखलाओं के नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। इस प्रदेश में तेजी से आर्थिक विकास करता हुआ बोमडिला नाम का एक शहर है, जहाँ आनंद और गौरव पर्यटन हेतु गये हुए थे। वे सुबह के 10 बजे आराम से सोकर उठे थे परंतु शीतलहर का प्रकोप कम नही हुआ था और धुंध के कारण लंबी दूरी तक देख पाना मुश्किल हो रहा था। उन दोनो को पर्यटन के संदर्भ मे जानकारी हेतु क्षेत्रीय पर्यटन कार्यालय में जाना था। ऐसे मौसम में मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों का लुत्फ उठाते हुए आनंद अपने मित्र गौरव के साथ मंथर गति से कार चलाते हुए आगे बढ रहा था। इसी समय एक लडकी ने हाथ देकर लिफ्ट मांगने के लिए इशारा किया। आनंद ने गाडी को उसके समीप रोक दिया और काँच उतार कर पूछा कि हम आपके लिए क्या कर सकते है ?

लडकी ने विनम्रतापूर्वक मुस्कुराते हुए कहा कि मेरा कॉलेज यहाँ से 10 किमी. आगे है यदि आप उस तरफ जा रहे है तो क्या मुझे वहाँ तक छोडने की कृपा करेंगे ? आज बहुत ज्यादा शीतलहर है और मेरी गाडी भी बीच रास्ते में खराब हो गई है। आनंद ने उसके व्यवहार और मिठास भरी वाणी से अभिभूत होकर उससे कहा कि हम लोग पर्यटन कार्यालय तक जा रहे हैं अगर आपका कॉलेज उस रास्ते पर है तो आपका सहर्ष स्वागत है। यह सुनकर वह बोली कि मेरा कॉलेज उसी के पास स्थित है। आनंद ने कार का दरवाजा खोला और वह लडकी सामने वाली सीट पर शालीनतापूर्वक बैठ गयी। उस लड़की के रूप और सौंदर्य को देखकर आनंद अनायास ही सोचने लगा कि आज का दिन कितना अच्छा है कि सुबह सुबह ही ऐसी मनमोहक संुदरता को देखने का अवसर मिल रहा है।

आनंद ने गाडी आगे बढाते हुये उससे पूछा कि आपका नाम क्या है और आप क्या करती है ? वह बोली ”मेरा नाम मानसी है और मैं बी.कॉम. अंतिम वर्ष की छात्रा हूँ।”

आनंद - ” कॉलेज की पढाई पूरी करने के बाद आगे आपका क्या इरादा है ?

मानसी - ” मैं आगे एमबीए करना चाहती हूँ परंतु बोमडिला में इस प्रकार की उच्च शिक्षा की सुविधा उपलब्ध नही है इसलिये मुझे गुवाहटी या ईटानगर जाकर अध्ययन करना होगा। आप लोग कहाँ से हैं एवं यहाँ किस हेतु आये हुये है ?

आनंद - मेरा नाम आनंद है और पीछे मेरा मित्र गौरव बैठा हुआ है। मैं इंजीनियर हूँ एवं गौरव डॉक्टर है तथा उच्च शिक्षा के लिये प्रयासरत है। हम दोनो मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के निवासी है और यहाँ छुट्टियाँ बिताने आये हुए है।”

मानसी- ”क्या आपके शहर में उच्च शिक्षा उपलब्ध है ?“

आनंद - “ हाँ, हमारा शहर उच्च शिक्षा का बड़ा केंद्र है और लगभग हर विषय में उच्च शिक्षा उपलब्ध है।“

अब धीरे धीरे उन तीनों के बीच मित्रवत बातचीत का दौर प्रारंभ हो गया था। तभी गौरव ने पूछा - “ आप को अनजान लोगों से लिफ्ट मांगते हुये डर नही लगता।“ उसने हँसते हुए कहा “ आप लोगों के लिये मैं भी तो अंजान हूँ, क्या आप लोगों को मुझसे डर लग रहा है ? नही, ना, इसी तरह मुझे भी आपसे कोई खतरा नही महसूस हो रहा है। यहाँ के लोगो के दिल और दिमाग में बहुत खुलापन है और महिला उत्पीड़न के मामले नगण्य है। “

गौरव ने मानसी से वहाँ की संस्कृति, रहन सहन एवं पर्यटन स्थलों के संदर्भ में जानने की इच्छा व्यक्त की। वह बोली कि यहाँ कि संस्कृति बौद्ध धर्म से प्रभावित है। खानपान में अधिकांश लोग मांसाहारी है। यहाँ की स्थानीय परंपरा के अनुसार विवाह के उपरांत लडके का सारा खर्च लडकी वहन करती है और लडका अपना घर छोडकर लडकी के साथ रहता है। यहाँ विवाह करने के लिए मुख्यतः चार पद्धतियाँ प्रचलित है जिनमें हिंदू, ईसाई, बौद्ध एवं स्थानीय रीति रिवाजों के अनुसार विवाह संपन्न होते है। यहाँ विवाह प्रायः बडी उम्र लगभग 30 वर्ष की उम्र के बाद होते है। यहाँ पर विवाह लंबे समय तक नही टिक पाते है। स्थानीय विवाह पद्धति में जितनी आसानी से शादी हो जाती है उतनी ही आसानी संबंध विच्छेद भी हो जाते है।

गौरव- “ क्या मेरी भी यहाँ शादी हो सकती है ?“ 

मानसी- “ यदि आप यहाँ किसी लड़की को पसंद करते है तो मैं आपकी मदद कर सकती हूँ।“

गौरव आनंद की ओर इशारा करते हुए मजाक में मानसी से पूछता है कि क्या इन महानुभाव की भी शादी हो सकती है ? वह बोली हाँ, क्यों नही। यदि मैं इन्हें पसंद हूँ तो मैं भी इनसे शादी के लिये तैयार हूँ। यदि इनकी विवाह के लिये सहमति है तो मैं यहाँ की प्रचलित पद्धति से विवाह कर सकती हूँ और यहाँ की परंपरा के अनुसार आपके जीवन यापन का संपूर्ण खर्च भी वहन कर सकने में सक्षम हूँ। मेरे पास कीवी के बगीचे है आप चाहे तो देख सकते है। यह सुनकर आनंद और गौरव आश्चर्यचकित हो गये कि कोई लडकी छोटी सी मुलाकात में ही स्वयं की शादी जैसे गंभीर विषय पर बात कर सकती है।

आनंद ने मानसी से कहा कि काश तुम पहले मिली होती तो मैं ऐसा जरूर कर सकता था परंतु मैं विवाहित हूँ इसलिये ऐसा करना संभव नही है। यदि तुम चाहो तो पीछे मेरा मित्र गौरव बैठा है जो कि अविवाहित है। यह सुनकर मानसी सोचने लगी और पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली कि मैं आपकी दूसरी पत्नी बनने के लिए भी तैयार हूँ। मैं आपकी पहली पत्नी को अपनी बडी बहन की तरह मान सम्मान दूंगी यदि आप चाहे तो एक माह अपनी पहली पत्नी के साथ और दूसरा एक माह यहाँ मेरे साथ बिता सकते है। यदि संभव हो तो मैं आपकी पत्नी के साथ वहाँ या वे चाहे तो यहाँ मेरे साथ भी सम्मानपूर्वक रह सकती है। यह सुनकर दोनों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।

आनंद कहता है कि आपका सुझाव विचार करने योग्य है परंतु यह अत्यंत गंभीर विषय है और मुझे कुछ समय दीजिए ताकि मैं इस विषय पर अंतिम निर्णय ले सकूँ। हमारे देश के कानून के अनुसार हिंदू धर्म में दूसरा विवाह करना दंडनीय अपराध है। हाँ यदि पहली पत्नी अनुमति और सहमति दे अथवा विधिवत संबंध विच्छेद हो गया हो तभी दूसरा विवाह संभव हो सकता है। मानसी कहती है कि आपको मेरे साथ विवाह करने में आपकी पहली शादी का होना बाधक बन रहा है परंतु यदि आप गंभीरता पूर्वक मनन करें तो पायेंगे कि हमारी प्राचीन संस्कृति में बहुपत्नी प्रथा हमेशा से रही है किसी भी हिंदू धर्मग्रंथ में दूसरी शादी करना प्रतिबंधित है, ऐसा नही लिखा है अर्थात् धर्म ग्रंथों के अनुसार दूसरी शादी प्रतिबंधित नही है। यदि बहुविवाह की संस्कृति आती है तो लड़कियों की कमी होने के कारण विवाह में दहेज जैसी कुप्रथा स्वतः समाप्त हो जायेगी। दो पत्नियों के रहने से पुरूष के मानसिक संतुलन में स्थायित्व आ सकता है। आनंद मानसी का वक्तव्य सुनकर तुरंत अपने कुल पुरोहित भास्कर महाराज को फोन लगाकर इस विषय पर मार्गदर्शन लेता है और उनसे शास्त्र सम्मत निर्णय की अपेक्षा करता है। भास्कर महाराज भी कहते हैं हाँ यह सही बात है कि हमारे शास्त्रों में कही भी नही लिखा है कि दूसरा विवाह प्रतिबंधित है यह तो तत्कालीन सरकारों की राजनीतिक नीतियों का परिणाम है कि उन्होंने हिंदू धर्म की परिपाटी पर कुठाराघात किया है। यह सुनकर आनंद फोन काटकर मानसी के ज्ञान की तारीफ करता है।

आनंद ने कहा कि हम लोग तवांग जाना चाहते हैं। यह सुनकर मानसी उनसे पूछती है कि क्या आपको तवांग के विषय में पूरी जानकारी है ? वे अनभिज्ञता जाहिर करते है। मानसी बताती है कि आपकी यह कार वहाँ तक नही जा सकती है। रास्ते में एक जगह बर्फ से जमी हुयी झील है जो कि सेना के नियंत्रण में है। उसे पार करने के लिये चारों चकों पर विशेष प्रकार की चेन का इस्तेमाल होता है जिससे बर्फ को हटाते हुये गाड़ी धीमी गति से चल पाती है। इस परिवहन हेतु जीप का इस्तेमाल किया जाता है जिसे वहाँ के निपुण ड्राइवर ही चला सकते है। मानसी आगे बताती है कि तवांग में अनेक दर्शनीय स्थल है जिनमें प्रमुख भारत चीन सीमा है। वहाँ पर जाने के लिये भी सेना से विशेष अनुमति लेना पड़ती है जिसमें कुछ समय लग जाता है। आनंद ने कहा कि हमारे पास तो ऐसी कोई अनुमति नही है, अच्छा हुआ आपने बता दिया वरना हमारा जाना निरर्थक हो जाता। गौरव कहता है कि इन सब औपचारिकताओं को पूरा करने के लिये हमें बोमडिला में ही दो दिन और रूकना पड़गा। मानसी आनंद से कहती है कि आप पर्यटन कार्यालय तक जा ही रहे है। वहाँ पर आप को सारी जानकारी मिल जायेगी। इसी वार्तालाप के दौरान मानसी का कॉलेज आ जाता है। मानसी गाड़ी से उतरकर आनंद को धन्यवाद देते हुये विनम्रतापूर्वक पूछती है कि आपको विवाह के विषय में निर्णय लेने के लिये कितना समय चाहिए ?

आनंद बोला कि हमारी आपकी मुलाकात हुये अभी एक घंटा भी नही हुआ है और हम एक दूसरे के विषय में कुछ भी नही जानते है। ऐसी परिस्थितियों में विवाह जैसा महत्वपूर्ण निर्णय लेना जल्दबाजी होगी। आनंद आगे कहता है कि क्यों ना हम कुछ और मुलाकातें करें ताकि हम एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ सके। मानसी बोली आपके इस सुझाव से मैं भी सहमत हूँ। यदि आप उचित समझें तो मैं भी आपकी मदद हेतु पर्यटन कार्यालय तक चल सकती हूँ क्योंकि लगभग आधे घंटे में मेरी बहन पल्लवी भी कॉलेज से वापिस आ जायेगी तब हम लोग वापिस बोमडिला ही जायेंगे। अगर आपकी सहमति हो तो हम लोग आधें घंटे बाद मेरी बहन को लेकर वापिस बोमडिला लौट चलेंगे तब तक हम लोग पर्यटन कार्यालय से होकर आ जायेंगे। यह सुनकर आनंद मानसी को पुनः कार में बैठाकर पर्यटन कार्यालय की ओर निकल जाता है परंतु कार्यालय में किसी की भी उपस्थिति नही थी यह देखकर वे वापस कॉलेज लौट आते है और पास ही स्थित एक रेस्टॉरेंट में बैठकर उसकी बहन पल्लवी का इंतजार करने लगते है। इसी बीच आनंद कॉफी का आर्डर देता है और वे सभी आपस में चर्चा करने लगते है। तभी मानसी आनंद से कहती है कि मैं अपनी बहन की सहेली को बता दूँ कि हम लोग यहाँ इस रेस्टारेंट में उसका इंतजार कर रहे हैं अन्यथा वह परेशान होगी। यह कहकर मानसी कुर्सी से उठकर चल देती है। मानसी के जाते ही वे दोनो आपस में वार्तालाप करने लगते है।

गौरव कहता है कि यहाँ कि संस्कृति में कितनी स्वतंत्रता एवं परिपक्वता है कि एक 20 साल की लडकी स्वयं अपने विवाह की बात कर रही है और एक विवाहित व्यक्ति से विवाह करके उसकी दूसरी पत्नी के रूप में भी रहने के लिए तैयार है। आनंद ने गौरव से पूछा कि तुम्हें क्या लगता है। यह रिश्ता कैसा रहेगा ? मानसी बहुत खूबसूरत और पढी लिखी लडकी है। गौरव मजाक ही मजाक में आनंद से कहता है कि एक एक माह वाली शर्त में शादी करने में क्या बुराई है। अपने घर में घरवाली से मजे और बोमडिला में दूसरी घरवाली से मजे। तुम्हारी किस्मत बडी लाजवाब है तुम शादीशुदा हो यह जानकार भी वह तुमसे शादी करने के लिये तैयार है और मैं अविवाहित हूँ फिर भी वह मुझे कोई भाव नही दे रही है। आनंद ने कहा कि यह तो दिल की बात है यह कब, कहाँ किस पर कैसे आ जाए, कोई नही जानता। गौरव आनंद से पूछता है कि तुम्हारा इरादा क्या है ? क्यों इस लडकी की और अपनी जिंदगी तबाह करने पर तुले हुये हो है। तुम एक 30 साल के समझदार व्यक्ति हो और मानसी अभी 20 साल की अल्हड जवानी के नशे में डूबी हुयी लडकी है। इस कदम से तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की प्रतिष्ठा धूमिल हो जायेगी। थोडी ही देर बाद मानसी आती हुई दिखती है और गौरव तथा आनंद अपना वार्तालाप वहीं रोक देते है चर्चा का विषय बदल देते है।

थोडी ही देर बाद मानसी के साथ एक लड़की आती हुयी दिखाई देती है। वहाँ पहुँचकर मानसी, गौरव और आनंद का परिचय अपनी बहन पल्लवी से कराती है। पल्लवी दिखने में मानसी से भी अधिक आकर्षक थी। गौरव उसे एकटक देखता ही रह गया। यह देखकर पल्लवी उसको कहती है कि आप किन ख्यालों में कहाँ खो गये हैं। यह सुनकर गौरव झेंप जाता है। मानसी पल्लवी को बताती है कि मैं आनंद से विवाह करना चाहती हूँ तो पल्लवी इस बात को सुनकर चौंक जाती है। वह मानसी से पूछती है कि यह इश्क का बुखार तुम्हें कब से चढ़ा है ? मानसी कहती है कि बस एक घंटे पहले से। मानसी उसे सारी बातें बता देती है। यह सुनकर पल्लवी बहुत आश्चर्यचकित हो जाती है।

गौरव पुनः कहता है कि जब तक आपके माता पिता की भी अनुमति नही मिल जाती है तब तक इन सब बातों का कोई महत्व नही है। मुझे विश्वास नही होता कि आपका विवाह एक शादीशुदा व्यक्ति के साथ हो सकेगा क्योंकि इनकी पहली पत्नी अभी है और इस कारण आपके माता पिता भी इसके लिये अनुमति नही देंगे। मानसी कहती है कि यह मेरी समस्या है इसका निदान कैसे करना यह मैं जानती हूँ। इनकी पहली पत्नी का होना इनकी समस्या है जिसका निदान इन्हें करना होगा। अतः सबसे पह्ले आप अपनी स्वीकृति दीजिये उसके बाद मुझे कुछ समय दीजिए ताकि मैं परिवार की सहमति प्राप्त कर सकूँ ।

गौरव पल्लवी को बड़े ध्यान से देख रहा था और मानो सपनों में खो गया था तभी पल्लवी बोलती है कि गौरव जी कहाँ ध्यान है ? कॉफी ठंडी हो रही है और हमें वापिस भी लौटना है। मौसम में बारिश की संभावना नजर आ रही है ? जिस कारण वाहन चलाने में असुविधा हो सकती है। आप जो चिंतन, मंथन कर रहे है वह बोमड़िला पहुँच कर भी कर सकते है। यह सुनकर गौरव तुरंत ही कॉफी खत्म करके जाने के लिये तैयार हो जाता है। वे लोग बोमड़िला वापिस आ जाते है। रास्ते में इस बात पर सभी की सहमति बनती है कि लौटकर मानसी और पल्लवी बोमड़िला के दर्शनीय स्थलों को दिखाने ले जायेंगी और शनिवार होने के कारण रात्रि में होने वाले मेले में भी जायेंगे। लगभग 4 से 5 घंटे दर्शनीय स्थलों पर घूमने के दौरान वे आपस में पारिवारिक, सामाजिक एवं संभावित विवाह के बारे में बातचीत करते हैं अंत में शनिवार को होने वाले मेले का लुत्फ उठाने के बाद अगले दिन मिलने का वादा करके वे सभी एक दूसरे से विदा ले लेते है। लौटते समय भी गौरव पल्लवी को एकटक देखता रहा। पल्लवी भी इस बात पर गौर कर रही थी।

रात्रि में होटल पहुँचकर आनंद और गौरव भोजन के पश्चात एक एक पैग लेते हुये आपस में चर्चा कर रहे थे। आनंद -“ गौरव मैं निर्णय नही कर पा रहा हूँ कि मानसी के साथ शादी करूँ अथवा नही क्योंकि निशा से विश्वासघात करके दूसरी शादी करने के लिये मेरा दिल नही मान रहा है।“

गौरव - “ आनंद तुम निशा भाभी के साथ कोई विश्वासघात नही कर रहे हो। तुम्हारे दिल में उनके लिए जो जगह है वो आज भी वैसी ही जैसी कि उनके साथ हुयी दुर्घटना से पहले थी जबकि हम सब यह बात जानते हैं कि उस दुर्घटना के कारण भाभी कभी माँ नही बन पायेंगी। फिर भी पूरा परिवार और तुम उन्हें कभी इस बात का अहसास तक नही होने देते। कई बार भाभी ने भी तुमसे किसी बच्चे को गोद लेने या फिर सरोगेसी के माध्यम से बच्चा प्राप्त करने की बात कही है परंतु हर बार तुमने मना कर दिया। अब ईश्वर की इच्छा से यह मौका आया है इसलिये बिना किसी सोच विचार के हाँ कर दो और वैसे भी निशा भाभी वहाँ रहेंगी और मानसी यहाँ रहेगी तो किसी को कोई भी समस्या नही होगी फिर समय देखकर एक दिन तुम भाभी को सब कुछ सच सच बता देना। मैं भी पल्लवी को बहुत पसंद करता हूँ और उससे विवाह करना चाहता हूँ।“ यह सुनकर आनंद मुस्कुरा देता है और दोनो इस विषय पर चर्चा करते हुये सो जाते है। ......

अगले दिन दिन आनंद मानसी को फोन करके उसके साथ विवाह की सहमति दे देता है यह सुनकर वह बहुत ही प्रसन्नतापूर्वक आनंद को बताती है कि मैं तुम्हे  पांच मिनिट बाद फोन करती हु वह तुरंत अपने पिताजी को आनंद की इस बात से अवगत कराती है उसके पिताजी कह्ते है कि बच्चो की खुशी मे ही मेरी खुशी है तुम आज दोपहर मे ही भोजन पर आमंत्रित कर लो, मानसी आनंद को फोन करके कह्ती है कि  पिताजी तुमसे मिलना चाहते है और इस हेतु उन्होंने तुम्हें और गौरव को आज दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया है। यह सुनकर आनंद खुशी से झूम उठता है और गौरव को यह खुशखबरी बताता है। दोनो ही तैयार होकर मानसी के आमंत्रण पर उसके घर पहुँचते है और वहाँ पर हुए अपने स्वागत, सत्कार और उनके विनम्र व्यवहार से वे गदगद हो जाते है। मानसी अपने माता पिता और मौसी से उनका परिचय कराती है। बातचीत के दौरान वह कहती है कि आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि मैं क्यों आपके साथ शादी करना चाहती हूँ ? इसका कारण यह है कि हमारे समाज में बहुत खुलापन है और यहाँ पर शादी लंबे समय तक नही टिकती है इसलिये मैं यहाँ शादी नही करना चाहती हूँ। मेरे लिए यह और भी अच्छी बात है कि आप विवाहित है इस कारण आप अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह समझते होंगे और अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से निर्वहन करेंगे।

बातचीत के दौरान मानसी के पिता बताते है कि उनकी यह अभिलाषा है कि दोनो लडकियों की शादी के उपरांत उनके पति भी यही उनके साथ रहे और मेरे कारोबार में हाथ बटाएँ। यही शादी के लिये हमारी एकमात्र शर्त है। यह सुनकर आनंद के चेहरे पर चिंता की लकीरे उभर आती है। आनंद की स्थिति को देखकर मानसी इशारे ही इशारे में आनंद से चुप रहने के लिये कहती है और स्वयं अपने पिता से कहती है कि मैंने इन्हें सब बता दिया है और यह सहमत है। यह सुनकर मानसी के पिता बहुत प्रसन्न होते है और सहर्ष ही इस रिश्ते को स्वीकार कर लेते है। वे आनंद के परिवारजनों के संबंध में पूछते है और आनंद से कहते है कि तुम्हारे माता पिता भी यहाँ आकर कुछ जानकारी चाहेंगे या संपूर्ण निर्णय तुम स्वयं लोगे। यह सुनकर आनंद ने कहा कि यह मेरा स्वयं का निर्णय है और इसमें उनका कोई हस्तक्षेप नही होगा। यह सुनकर मानसी के पिता काफी गंभीर होकर कहते हैं कि ठीक है परंतु मुझे व्यवहारिक रूप से आपके परिवारजनों को इसकी पूर्व सूचना देनी चाहिए यह सुनकर मानसी कहती है कि जब सही समय आयेगा तो मैं आपको बता दूंगी तब आप इनके परिजनों से बात कर लीजियेगा। इस प्रकार हंसी खुशी से भरे माहौल में सभी एक दूसरे से अच्छी तरह से परिचित होकर संतुष्टिपूर्वक विदा हो जाते है।

उसी दिन शाम को मानसी, उनको अपने कीवी के बगीचे पर आमंत्रित करती है। वहाँ पहुँचकर आनंद और गौरव, साडी में मानसी और पल्लवी की सुंदरता को देखते ही रह जाते है। आनंद धीरे से मानसी से कहता है कि इस साडी में तुम बहुत ही सुंदर लग रही हो। गौरव भी पल्लवी को छेडते हुए गाना गाता है कि क्या खूब लगती हो, बडी सुंदर दिखती हो। इस प्रकार हंसी मजाक से सारा वातावरण आनंदित रहता है। कुछ देर बाद आनंद ने मानसी और पल्लवी से कहा कि हमें तवांग जाना है अगर आप लोग भी हमारे साथ चलेंगे तो हमें बहुत अच्छा लगेगा। यह सुनकर मानसी और पल्लवी आनंद से कहती है कि इस संबंध में हमें अपने माता पिता से पूछना होगा। अगले दिन मानसी अपने पिताजी से इस बारे पूछती है तो वे उसे जाने की अनुमति दे देते है परंतु उन्हें सावधानी पूर्वक जाने और मर्यादित व्यवहार की हिदायत देते है। मानसी तवांग का कार्यक्रम निश्चित हो जाने के पश्चात वहाँ के इंतजाम में लग जाती है और वह वहाँ की सबसे अच्छी होटल अशोका जो कि केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा संचालित है उसमें दो सुइट रूम आरक्षित करवाती है एवं वहाँ के मैनेजर को भारत चीन सीमा पर जाने के लिये आवश्यक अनुमति पत्र प्राप्त करने के लिये अनुरोध करती है।

दूसरे दिन वे सभी तवांग जाने के लिये रवाना हो जाते है। पल्लवी रास्ते के लिए पोर्टेबल ऑक्सीजन केन एवं रम की बॉटल रख लेती है। यह देखकर मानसी कहती है कि पल्लवी यह तुमने बहुत अच्छा किया वरना मैं तो भूल ही गयी थी। पल्लवी मुस्कुराकर कहती है अब तो तुम आनंदमयी हो गयी हो तो तुम्हें कैसे याद रहेगा। गौरव पूछता है कि रम किसलिए रख ली, होटल में तो वैसे ही मिल जायेगी। वह कहती है कि यह तो मुझे भी मालूम है परंतु ठंड की दम से बचने के लिए रम चाहिए। दर्रे के पास जब तापमान शून्य से नीचे रहेगा तो पैरो के तलवे में रम लगाना अनिवार्य होता है। अगर आप नही लगायेंगे तो इससे आपको जो तकलीफ होगी इसका नजारा आपको वही समझ में आयेगा।

तवांग, भारत का सीमांत शहर है। यहाँ से लगभग 40 किमी. दूर चीन की सीमा लग जाती है। यहाँ जाने के लिये पर्यटकों को विशेष अनुमति लेना पडती है। मानसी ने इसकी व्यवस्था पहले से ही करा ली थी। यह देखकर पल्लवी, आनंद से कहती है कि लगता है मानसी पर आप का प्रभाव आने लगा है तभी तो इसने बुद्धिमत्ता दिखाते हुये पहले से ही तवांग में भारतीय सीमा के पास तक जाने के लिए व्यवस्था कर ली है। पल्लवी सभी को बताती है कि तवांग के बारे में कुछ बातें बहुत प्रसिद्ध है, इस शहर में सन् 1962 के युद्ध के समय के शहीद सैनिकों की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। इसमें हम चीन से क्यों हारे इसके कारणों को दर्शाया गया है। उसमें बताए गए कारणों में प्रमुख है तत्कालीन प्रधानमंत्री के पंचशील के सिद्धांत, विदेश मंत्री की अदूरदर्शिता तथा अनुभव का अभाव, चीन की ताकत को कम आंकना, आधुनिक हथियारों की कमी के कारण सेना की तैयारी का न होना, हमारी संचार व्यवस्था एवं गोपनीय सूचनाओं को प्राप्त न करने की क्षमता इत्यादि।

इस युद्ध में हमारे देश के अनेक सैनिकों ने बलिदान दिया। अरूणाचल प्रदेश में ऐसा कोई चौराहा या सडक का मोड नही है जहाँ पर कि देश के लिये बलिदान देने वाले सैनिक का नाम ना लिखा हो। तवांग शहर का निवासी एक सैनिक अंतिम समय तक अपनी चौकी पर डटा रहा और अंत में वीरतापूर्वक लडते हुए अत्यंत घायल अवस्था में अस्पताल लाया गया। उसकी यही अंतिम इच्छा थी कि देश का हर युवा इस हार का बदला लेगा एवं अपनी हारी हुई भूमि को पुनः चीन से प्राप्त करेगा। उसकी आत्मा को आज तक शांति नही मिली। आज भी उस चौकी पर रात में वह सैनिक हाथों में बंदूक लिए नजर आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक युद्ध में खोई हुई अपनी प्रतिष्ठा एवं भूमि को हम वापिस प्राप्त नही कर लेते तब तक उसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी। सेना में तैनात जवान कभी कभी उसकी आवाज सुनते हुए ऐसा महसूस करते है कि वह वही कही पर मौजूद होकर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तैनात है। आज भी राष्ट्र के प्रति उसकी श्रद्धा, सम्मान, समर्पण एवं बलिदान को याद कर हम अपने को गौरवान्वित महसूस करते है।

यह सुनकर आनंद, पल्लवी की तारीफ करते हुए कहता है कि यह बहुत अच्छी बात है कि तुम्हें इतिहास का भी अच्छा ज्ञान है। इस प्रकार कुछ समय पश्चात सभी लोग सेला दर्रे के पास पहुँच जाते हैं। सेला दर्रा बर्फ से साल भर आच्छादित रहता है। यहाँ पर ऑक्सीजन की कमी होती है इसलिये पल्लवी ने आपातकालीन स्थिति के लिये ऑक्सीजन का केन भी साथ रख लिया था। सभी लोग दर्रे के पास स्थित झील को अत्यंत सावधानी पूर्वक धीरे धीरे पार करने लगे। इस झील पर आवागमन के लिये ड्राइवरों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है जिसका प्रमाण पत्र उनके पास रहता है और इसे दिखाने के उपरांत ही झील को पार करने दिया जाता है। इस को पार करने के लिये बर्फ को काटकर रास्ता बनाया जाता है। इस पर चलने हेतु वाहनों के चकों में विशेष प्रकार की चेन बांधी जाती है ताकि गाडी बर्फ पर आसानी से चल सके।

झील पार करते समय अचानक ही गौरव को सांस लेने में कठिनाई का अनुभव होने लगा। पल्लवी ने तुरंत गौरव को ऑक्सीजन मास्क लगाकर ऑक्सीजन देना प्रारंभ कर दिया। लगभग 10 मिनिट के सबसे खतरनाक एवं सबसे दर्शनीय पडाव को पार करते हुये वे आगे की ओर बढ गये। पडाव पार करते ही पल्लवी ने गौरव के चेहरे से ऑक्सीजन मास्क हटा दिया। अब गौरव को सांस लेने में कोई तकलीफ नही थी। पल्लवीने बताया कि हम लोग लगभग 4000 मी. की ऊँचाई पर है और यहाँ ऑक्सीजन की कमी होने के कारण किसी किसी को सांस लेने में तकलीफ हो जाती है। मास्क हटा देने के बाद अब गौरव को बहुत ठंड का अनुभव हो रहा था। पल्लवी ने यह देखकर तुरंत गौरव को रम पिलाकर अपने आगोश में भर लिया। कुछ देर बाद जब गौरव के शरीर का तापमान सामान्य हो गया तो उसे देखकर आनंद मुस्कुराते हुए बोला ठं डमें गर्मी का मौसम कैसा लगा। यह सुनकर गौरव बोला तुम भी तो मानसी के साथ गर्म हवा के झोंके ले रहे हो। रास्ते में भारतीय सैनिकों की कड़ी पहरेदारी देखकर आनंद ने कहा कि हम बख्तरबंद जीप के अंदर भी इतनी ठंड का अनुभव कर रहे है और हमारी सेना के वीर जवानों को देखो बाहर शून्य से नीचे तापमान पर भी कितनी मुस्तैदी के साथ डटे हुये है। हमें अपनी सेना की बहादुरी और देशप्रेम के प्रति बहुत गर्व है। कुछ देर बाद वे सभी जीप से उतरकर शहीद जसवंत सिंह की स्मृति में बने हुये स्मारक को देखने के लिये उतरते है। मानसी कहती है कि यहाँ की एक सच्ची घटना बहुत प्रसिद्ध है जिससे मैं आप लोगों को अवगत कराती हूँ।